Tuesday, June 27, 2017

दोहरी मानसिकता पहलाज़ निहलानी की

सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष पहलाज़ निहलानी के बारें में कौन नहीं जानता।उनके फ़िल्म सेंसर करने के नियमों से भी सभी अच्छी तरह से वाकिफ़ हैं।अभी किस फ़िल्म में किस संवाद को फ़िल्म में रखना है या नहीं रखना है इसके लिये जनता के वोट मंगा रहे हैं और जब तक ये वोट आयेगें पक्ष और विपक्ष में। तब तक देश का छोटे से छोटा बच्चा भी उस सम्वाद को देख और सुन चुका होगा।  वैसे उनकी सेंसर की कैंची बड़े बैनर की फिल्मों पर कम ही चलती है और चलती भी तो बेवकूफी की बातों पर । साला खड़ूस फ़िल्म का शीर्षक तो ठीक है लेकिन फिल्म में संवाद में यह नहीं होना चाहिए। वैसे सेंसर करने के ये नियम कोई नये नहीं हैं ।  हॉरर फिल्म एक थी डायन को  यू/ ए सर्टिफिकेट मिला था जबकि सच में फ़िल्म को ए सर्टिफिकेट मिलना चाहिए था । एक छोटी फ़िल्म को बस इसलिये ए सर्टिफिकेट दिया क्योंकि उसमें सिर्फ आत्मा शब्द बोला गया था। पिछले दिनों आयी यशराज़ बैनर की फ़िल्म बेफिक्रे को भी यू/ए मिला जबकि सब जानते है कि फ़िल्म क्या और कैसी थी । फ़िल्म को यू/ए इसलिये दिया क्योंकि फ़िल्म में पेरिस की संस्कृति दिखाई थी । यह नही सोचा कि फ़िल्म को दर्शक  कहाँ के देखेगे पेरिस के कि भारत के। अब फ़िल्म जब हैरी मेट सेज़ल के साथ भी वहीं कर रहे हैं जो अपना काम है करो लाख लोगो के वोट मंगा कर फ़िल्म सेंसर होगी अब जैसे रीयल्टी शो वाले  ड्रामा करते है।

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