Monday, April 22, 2013

 फिर मन तार तार हुआ है एक ५ वर्षीय छोटी से बच्ची के साथ मानवता को कलंकित करने वाला जो अत्याचार हुआ उसे सुनकर . क्या उस वहशी का मन जरा भी नही कांपा होगा जब उसने उस बच्ची के साथ ऐसा दुष्कर्म किया होगा . किस मिट्टी का बना होगा वो वहशी दरिन्दा . क्या ऐसे वहशियों को नारी देह का अलावा कुछ नज़र नही आता . क्या सिर्फ उन्हें उनका जिस्म ही नज़र आता है जिसे वो तार -- तार कर देते  हैं ? क्या उस बच्ची ने उस वहशी से  बचने के कोई उपाय नही किये होंगे .सोचो जरा वह बेचारी छोटी सी बच्ची एक बंद कमरे में उससे बचने के लिए कैसे इधर उधर भाग रही होगी ? सोच कर ही रूह काँप जाती है .
कब तक आखिर कब तक ऐसे दरिंदे ऐसे ही खुला घूमते रहेगें . कब तक बच्चियाँ ऐसे ही जुल्मों का शिकार होती रहेगीं . 
उस बच्ची को तो इसका भान भी नही होगा की यह दरिन्दा क्या कर रहा है उसके साथ ? कितनी तकलीफ, कितना दर्द सहा होगा उस नन्ही सी जान ने , सोच कर ही कलेजा काँप जाता है और उसने तो यह सब सहा है जो यह भी नहीं जानती कि क्या हो रहा है उसके शरीर के साथ .

"वो छोटी सी  चिड़िया जिसके पर तार - तार कर दिये एक खूनी दरिन्दे ने   
कैसे अब वो उड़ना सीखेगी पल - पल  दर्द देगा उसे  बीता हुआ हर मंज़र " 

Monday, April 15, 2013

"बच्चियों का क्या कसूर "

 दिल्ली में दिसम्बर में हुए बलात्कार के दोषियों को अभी सज़ा हुई भी नही है लेकिन उस दुर्घटना पर जिस तरह लोगों ने अपना रोष दिखाया उसके बावजूद भी इस तरह की दुर्घटनाये रुकी नही हैं . विक्षिप्त लोगों की हिम्मत बढती ही जा रही  है . क्या होता है उनको कि वो ४ साल  ८  साल और १ ० साल की बच्चियों को देख कर कि वो इनको भी नही  छोड़ते . इतनी छोटी बच्चियों को तो पता भी  नही होता होगा कि उनके साथ क्या हो रहा है . इतनी छोटी बच्चियाँ जिनका शरीर भी पूरी तरह से विकसित नही हुआ . उनमें क्या दिखाई देता हैं उनको समझ नही आता  . बस ऐसे लोगों को तो  मतलब होता है अपने तन की  आग बुझाने से . उन्हें इस बात की जरा भी परवाह नही होती की उस छोटी बच्ची पर क्या बीत रही होगी ? क्या ऐसा करते समय उनके सामने उनकी बेटी या बहन के चेहरे उनकी आँखों के सामने नही आते ? जबकि अखबार में इस तरह का समाचार पढ़ते ही मन विचलित हो जाता है . 

 दिल्ली की बलात्कार की घटना के बाद कई पुरुषों ने अपनी मानसिकता को जाहिर करते हुए कई तरह के बयान भी दिये कि  लड़कियों को ऐसे कपड़े नही पहनने चाहिये , उन्हें इस तरह सजना संवरना नही चाहिये , रात  में घर से बाहर नही चाहिये . और भी पता नही क्या  क्या ? कोई कहता है  उन पर बंदिशे लगाओ , उन्हें मोबाइल नही देना , शादी १५ साल में कर  दो जिससे वो इन तरह की दुर्घटना से बची रहे . लेकिन इतनी छोटी बच्चियों के पास न तो फोन होता है और वो तो रात में अकेली घर से बाहर भी नही जाती और न ही वो ऐसा  भड़कीला मेकअप और बदन दिखाऊ कपडे पहनती हैं जिससे वो किसी भी पुरुष को ललचा सकें  .फिर क्यों उनके साथ इस तरह के हादसे होते हैं ? उनका क्या कसूर है ?
कसूर तो है उन मानसिक रूप से बीमार लोगों का , जिन्हें एक शरीर चाहिये अपनी कुत्सित इरादों को रूप देने के लिए .  
जिन पर अत्याचार हो उन पर ही पाबंदी लगाओ और अत्याचारी खुले सांड की तरह घूमे यह कहाँ का कायदा है .

Tuesday, April 9, 2013

क्या आदित्य रॉय कपूर और श्रद्धा कपूर ने भी आशिकी २ के लिए "यू ट्यूब " पर आडिशन दिया था


                           
'आशिकी २' नाम से जल्दी ही फिल्म आने वाली है और दर्शकों को बेसब्री से इंतज़ार भी है इस फिल्म का , क्योंकि यह फिल्म १९९० की हिट फिल्म "आशिकी " का रीमेक है . इस फिल्म में नायक और नायिका के चयन के लिए "यू ट्यूब " पर आडिशन भी लिए गए . हजारों की  संख्या में लोगों ने आडिशन भी दिये  लेकिन नतीजा क्या रहा जीरो ?  क्योकि इस फिल्म में तो आदित्य रॉय कपूर और श्रद्धा कपूर की जोड़ी है . यह दोनों कलाकार तो इस फिल्म से पहले भी कई फिल्मों में अभिनय कर चुके हैं . क्या इन दोनों ने भी  "यू ट्यूब " पर आडिशन दिया था या इन दोनों का चयन पहले ही तय था . "यू ट्यूब " पर फिल्म के लिए कलाकारों का आडिशन सिर्फ पब्लिसिटी स्टंट तो नही था  या इन दोनों से बेहतरीन कलाकार निर्देशक मोहित सूरी की  मिले ही नहीं . 

खैर जो भी हो अब जल्दी ही यह फिल्म दर्शकों के सामने होगी . क्या यह फिल्म भी पहले बनी "आशिकी "  की तरह कामयाब होगी ? 
नही पता क्या  होगा इस फिल्म का , क्योंकि जहाँ तक  रीमेक फिल्मों की बात है दर्शकों ने इन फिल्मों को  ज्यादा नही सराहा है . इसका सबसे बेहतरीन नमूना है साजिद खान की "हिम्मतवाला" . 
पहले जब विशेष फिल्म्स  के बैनर में फ़िल्में बनती थी उनका एक क्लास होता था , बेहतरीन गीत -- संगीत होता था . इस फिल्म से कई लोगों ने अपना कैरियर भी शुरू किया जैसे राहुल रॉय , अनु अग्रवाल इसके साथ गीत -- संगीत में गायक  कुमार सानू और संगीतकार जोड़ी नदीम - श्रवण की लोकप्रियता भी इसी से शुरू हुई  लेकिन वैसा बेहतरीन गीत -- संगीत तो नदारद है इस फिल्म में .  इसके अलावा जिस तरह की फ़िल्में  आज कल इस बैनर में बनती हैं उनके क्या कहने ?
क्या हम उम्मीद करे की यह फिल्म भी पिछली फिल्म की तरह कामयाब होगी ? या ....................