Monday, April 15, 2013

"बच्चियों का क्या कसूर "

 दिल्ली में दिसम्बर में हुए बलात्कार के दोषियों को अभी सज़ा हुई भी नही है लेकिन उस दुर्घटना पर जिस तरह लोगों ने अपना रोष दिखाया उसके बावजूद भी इस तरह की दुर्घटनाये रुकी नही हैं . विक्षिप्त लोगों की हिम्मत बढती ही जा रही  है . क्या होता है उनको कि वो ४ साल  ८  साल और १ ० साल की बच्चियों को देख कर कि वो इनको भी नही  छोड़ते . इतनी छोटी बच्चियों को तो पता भी  नही होता होगा कि उनके साथ क्या हो रहा है . इतनी छोटी बच्चियाँ जिनका शरीर भी पूरी तरह से विकसित नही हुआ . उनमें क्या दिखाई देता हैं उनको समझ नही आता  . बस ऐसे लोगों को तो  मतलब होता है अपने तन की  आग बुझाने से . उन्हें इस बात की जरा भी परवाह नही होती की उस छोटी बच्ची पर क्या बीत रही होगी ? क्या ऐसा करते समय उनके सामने उनकी बेटी या बहन के चेहरे उनकी आँखों के सामने नही आते ? जबकि अखबार में इस तरह का समाचार पढ़ते ही मन विचलित हो जाता है . 

 दिल्ली की बलात्कार की घटना के बाद कई पुरुषों ने अपनी मानसिकता को जाहिर करते हुए कई तरह के बयान भी दिये कि  लड़कियों को ऐसे कपड़े नही पहनने चाहिये , उन्हें इस तरह सजना संवरना नही चाहिये , रात  में घर से बाहर नही चाहिये . और भी पता नही क्या  क्या ? कोई कहता है  उन पर बंदिशे लगाओ , उन्हें मोबाइल नही देना , शादी १५ साल में कर  दो जिससे वो इन तरह की दुर्घटना से बची रहे . लेकिन इतनी छोटी बच्चियों के पास न तो फोन होता है और वो तो रात में अकेली घर से बाहर भी नही जाती और न ही वो ऐसा  भड़कीला मेकअप और बदन दिखाऊ कपडे पहनती हैं जिससे वो किसी भी पुरुष को ललचा सकें  .फिर क्यों उनके साथ इस तरह के हादसे होते हैं ? उनका क्या कसूर है ?
कसूर तो है उन मानसिक रूप से बीमार लोगों का , जिन्हें एक शरीर चाहिये अपनी कुत्सित इरादों को रूप देने के लिए .  
जिन पर अत्याचार हो उन पर ही पाबंदी लगाओ और अत्याचारी खुले सांड की तरह घूमे यह कहाँ का कायदा है .

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