Tuesday, October 11, 2022

कुत्ता भी घर का एक सदस्य है

पिछले दिनों अभिनेता अजय देवगन के प्यारे कुत्ते की मृत्यु हो गयी थी। इसकी सूचना उन्होंने ट्विटर पर दी कि वो दुखी हैं क्योंकि उनका प्यार कुत्ता अब इस दुनिया में रहा। इस समाचार को पढ़कर बहुत सारे लोगों ने अपना शोक व्यक्त किया और  आर आई पी लिख दिया। इस बात पर कुछ लोगो की पोस्ट मैंने फेसबुक पर देखी , वो बहुत दुखी थे इसलिए नहीं कि किसी का प्यारा कुत्ता मर गया था बल्कि इसलिए परेशान थे  क्योंकि क्यों लोग कुत्ते के मरने पर इस तरह अपना शोक व्यक्त कर रहे हैं।  

कुछ लिख रहे थे आज कुत्ते पालना फैशन बन गया है, कुत्ते के मरने पर इतना अफ़सोस और गाय के मरने पर कुछ भी शोक नहीं करते लोग। कुत्ते पालने वाले की शक्लें भी मुझे तो कुत्तों जैसी ही लगती है  और भी जोकुछ उनके गंदे दिमाग में आ रहा था। 

ऐसा नहीं है कि गाय के मरने पर किसी को अफ़सोस नहीं होता है जिसके घर की गाय होती है उससे पूछिये उसे कितना दर्द होता होगा। इसी तरह कुत्ते के मरने पर भी दर्द होता है। क्योंकि गाय हो या कुत्ता या बैल या तोता वो घर का एक सदस्य होता है और उसके इस तरह जीवन से विदा लेने पर तकलीफ होती ही है।
 दस - बारह साल जो भी जीव आपके साथ रहता उससे घर के हरेक सदस्य का जुड़ाव होना लाजिमी है।  

जिसकी पीर होती होती है वही उसका दर्द भी जानता है जब तक आप कोई पालतू अपने घर नहीं पालेंगे आपको इस प्यार, इस लगाव और उसके बिछुड़ने पर दर्द महसूस नही होगा। 

इसलिए बिना सोचे समझे और जाने अपनी कड़वी जुबाँ बंद रखिये। इसी 
तरह बकवास करते रहेंगे तो आपके जाने पर भी किसी को दर्द नहीं होगा।    

पुत्री की मंगल कामना भी करिये और पुत्री का भी मान बढ़ाइये।

जब भी मैं भगवान की आरती करती हूँ या कोई भी धार्मिक किताब पढ़ती हूँ हमेशा ही मन में ख्याल आता है। क्यों कभी किसी भी आरती में कोई पुत्री की कामना नहीं करता है ? और क्यों कभी कोई भी उसकी लम्बी उम्र की कामना नहीं करता है ? 

आज जब सब कुछ बदल रहा है। अब जब ऑनलाइन पूजा हो जाती है , प्रसाद मिल जाता है या हम भगवान के दर्शन भी कर लेते हैं तो फिर इन धार्मिक पुस्तकों में क्यों बदलाव नहीं किये गये। 

दुर्गा देवी के कवच में अपने शरीर के सभी अलग -अलग अंगो की रक्षा करने का उल्लेख है । साथ में पुत्रों की यह देवी रक्षा करे और पत्नी की यह देवी  रक्षा करे लिखा गया है  लेकिन पुत्री की कौन सी देवी रक्षा करे यह लिखा ही नहीं गया है। अफ़सोस होता है यह सब पढ़ कर। इसी तरह गणेश जी की आरती में "बांझन को पुत्र देत " है। "बाँझन को पुत्र देत " क्यों ? क्या हमेशा कोई औरत ही बाँझ होगी  क्या कभी कोई पुरुष बाँझ नहीं होगा।

  इसी तरह  मैं दुर्गा शप्तशती पढ़ती हूँ उसमें पुरुष के हिसाब से ही सभी लिखा गया है कि जैसे बस जैसे कोई पुरुष यह पुस्तक पढ़ रहा हो , क्या कोई स्त्री यह पुस्तक नहीं पढ़ सकती ?
एक ही लीक पर लिखी हुई है सभी धार्मिक किताबें। अब तो इनमें बदलाव करो। क्या यह सब धार्मिक पुस्तकें पढ़ते हुए आप कभी यह बातें नहीं सोचते। क्या आपको नहीं लगता इन पुस्तकों में पुत्री का भी जिक्र होना चाहिए।
 अगर आपको भी मेरे तरह कुछ इस तरह का अनुभव होता है तो आप इन पुस्तकों और आरती को पढ़ते हुए पुत्र के साथ - साथ पुत्री की मंगल कामना भी करिये और पुत्री का भी मान बढ़ाइये। 


Wednesday, December 25, 2019

बलात्कारी की सज़ा फाँसी या एनकाउंटर या ?


पिछले दिनों हैदराबाद में बलात्कारियों का जो एनकाउंटर हुआ वो सही था या गलत इसके पीछे तो लोगों में बहस छिड़ी ही हुई है. लेकिन इस एनकाउंटर के पीछे भी हमारी लचर भारतीय कानून व्यवस्था  ही है जो गुनाहगार साबित होने के बाद भी सज़ा देने में बहुत देरी कर देता है।  निर्भया केस को ही ले लीजिये अगर समय रहते उसके दोषियों को सज़ा हो जाती तो कितना अच्छा होता। लोगों में कानून पर विश्वास और बढ़ जाता और शायद २०१२ के बाद जितने भी वीभत्स बलात्कार हुए शायद नहीं होते, लेकिन कुछ नहीं हुआ और जिसके चलते बलात्कारों की संख्या में लगातार वृद्धि ही होती रही। आँकड़े गवाह हैं -- जहाँ २०११ में ५७२ बलात्कार के मामलें दर्ज हुए वहीं  २०१६ में २१५५ दर्ज हुए।  २०१२ में  जहाँ सारा देश निर्भया के साथ था और गुनाहगारों ने अपना गुनाह भी कबूल कर लिया था , फाँसी की सज़ा भी सुना दी गयी थी फिर भी १३२ फीसदी वृद्धि ही हुई। यानि लोगों में कानून को लेकर कोई डर ही नहीं है। नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो की रिपोर्ट की माने तो देश में हर घंटे में ४ रेप यानि हर १४ मिनट में १ रेप होता है। बलात्कार के मामलें में मध्य प्रदेश सबसे अव्वल आता है फिर उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र तीसरे नंबर पर है। २०१२ में हुई  इस दुर्घटना के  इतने सालों के बाद भी निर्भया के गुनाहगार जेल में हैं हालांकि उन्हें फाँसी होनी तय है फिर किस बात की देरी ? क्या उन्होंने निर्भया के साथ कुछ करने से पहले कुछ सोचा नहीं न ,फिर  इतने सालों तक क्यों अपराधी पल रहे  हैं। 

 अभी बहुत सारे मसले हैं जिन पर समय रहते कुछ हुआ होता तो कुछ बेहतर हो सकता था।  मैं बात कर रही हूँ उस लड़की की जो उन्नाव में जला कर मारी दी गयी। उस बलात्कारी को सही सज़ा मिली होती और फाँसी पर वो लटका होता तो आज वो बेचारी बच्ची ज़िंदा होती। लेकिन उस बलात्कारी ने जमानत से छूटते ही लड़की को जला दिया। अभी भी इस केस में ज्यादा कुछ तसल्ली लायक कुछ हुआ नहीं है। अब लड़की के परिवार वालों ने भी दोषियों के साथ हैदराबाद की तरह ही सज़ा देने ( एनकाउन्टर करने )  की मांग की है। तो क्या हम समझें कानून से कुछ होने वाला नहीं है अब बस एनकाउंटर के जरिये ही बलात्कारियों सज़ा मिलेगी। हालांकि इस तरह से एनकाउंटर का होना और दोषियों का मारना किसी भी तरह से सवैंधानिक नहीं हैं लेकिन क्या करें हमारे देश में बाबा आदम के जमाने के  ही नियम कानून अभी तक चल रहे हैं. इसी से सारे देश में  रोष है।  वैसे ऊपर से चाहे लोग इस एनकाउन्टर को असवैंधानिक जरूर कह रहे हैं लेकिन अंदर ही अंदर सभी खुश हैं क्योंकि इतनी जल्दी कभी भी किसी को न्याय नहीं मिला है। 

क्या ऐसा एनकाउन्टर उन लोगों पर भी लागू हो सकता है जो रसूख वाले हैं , नेता हैं, वैसे इसकी उम्मीद बहुत कम है।  जी हाँ -यहाँ  जिक्र हो रहा है एम एल ए कुलदीप सेंगर का जो बलात्कार और हत्या के मामलें में दोषी हैं।  इसी तरह स्वामी चिन्मयानंद पर भी बलात्कार के आरोप हैं। ऐसे ही बहुत सारे रेप केस हैं जिन्हें फास्ट ट्रेक कोर्ट में सुलझाया सकता है जिससे दोषियों को सज़ा मिले और पीड़ित को राहत मिलें। लेकिन ऐसा होता नहीं है।  कितनी सरकारें आयी - गयी महिलाओं की स्थिति में रत्ती भर भी सुधार नहीं हुआ है अगर हुआ होता तो रेप की संख्या बढ़ने की बजाय घटती। 

ऐसा ही रहा  तो और देश में अनेकों एनकाउन्टर होंगे और पीड़ितों को न्याय मिलेगा।  बलात्कार का दोषी जितना बलात्कारी है उतना ही हमारे देश का कानून जो पीड़ित को सही समय पर न्याय नहीं देता।  यही वजह है कि आज लोगों का विश्वास कानून की बजाय  एनकाउन्टर पर है। क्या हमारे देश में अब बलात्कारी की सज़ा एनकाउन्टर हो गयी है ?

Monday, February 18, 2019

दर्शन श्री काशी विश्वनाथ के

पिछले दिनों बनारस यानि काशी जाना हुआ तो स्वाभाविक ही था कि हम श्री काशी विश्वनाथ के दर्शन लिये भी जायेगें ही। हमें दर्शन तो करने थे बहुत करीब से भगवान शिव के,  लेकिन कैसे सम्भव हो इसकी जानकारी हमें बिलकुल ही नहीं थी।  वहाँ पंहुच कर किसी जानकार ने बताया कि अगर आपको मंगला आरती करनी हो और भगवान का श्रृंगार देखना हो तो आजकल यह सब सम्भव है टिकट खरीदिये और आधी रात ढाई बजे पँहुच कर कर किसी विशेष गेट पर लाइन में लग कर अंदर मंदिर में प्रवेश कर आप बाबा विश्वनाथ के दर्शन कर सकते हैं। हमने अपने मित्र के कहे अनुसार सब किया  और मंदिर के प्रांगण में बाकायदा लाइन में लग कर पंहुच गये  दर्शन के लिये।  रात ३ बजे से ४ बजे भोर तक बाबा का श्रृंगार और आरती देखी थोड़ी दूर से, क्योंकि नंबर के मुताबिक ही अंदर बैठने को मिला। हमने आरती मंगला बहुत अच्छे से देखी हर हर महादेव की घोष से सारा मंदिर गुँजायमान था।सारी व्यवस्था बहुत ही अच्छी थी। 
 जैसे कि सभी को पता है ,हमारे यहाँ लोगों में धैर्य बिलकुल भी नहीं है।  हर कोई चाहता है कि सबसे पहले वो ही बाबा के दर्शन कर लें।  इसके चलते थोड़ी धक्का मुक्की भी हो गयी, शिवलिंग पर चढ़ाने के लिए लाया गया दूध भी लोगों पर गिरने लगा। पण्डित जी आरती भी भक्तों के लिए लेकर आये उसमें भी हर किसी को  पहले आरती लेनी थी , ऐसे में जो लम्बा था उसने छोटे कद वाले को दबा दिया।  इतना भी सब अच्छा था  लेकिन जैसे ही मंदिर के गर्भ गृह में जाने का नंबर आया भीड़ बेकाबू , जैसे - तैसे अन्दर पँहुचे किसी ने शिवलिंग पर जल चढ़ाया , किसी ने नहीं , कोई लेट पर धोक खाने लगा तो कोई ऐसे ही धक्के के साथ बाहर आ गया। 

मंदिर बाहर की बाहर की व्यवस्था तो फिर भी ठीक थी लेकिन मंदिर के अंदर की व्यवस्था बिलकुल खराब थी।  मंदिर के चार दरवाजे थे तीन से लोग दर्शन के लिए आ रहे थे और एक दरवाजे से पुलिस वाले हाथ पकड़ कर बाहर निकाल रहे थे. क्या तरीका है इतनी दूर दूर से भक्त  आते हैं  मंगला आरती के लिए, बाबा के दर्शन के लिए, कम से कम एक बार स्पर्श तो करने का अनुभव मिले। लेकिन सब बेकार वहाँ जाकर लगा कुछ निराशा ही हाथ लगी। 
मुझे नहीं पता था कि आरती , दर्शन सब की ऑनलाइन बुकिंग होती है 
( https://shrikashivishwanath.org/# ) इसलिए अब जब जाये बनारस और बाबा के दर्शन करना चाहे तोऑनलाइन बुकिंग करवायें तो ज्यादा अच्छा है। 
हर हर महादेव। 

पुलवामा एनकाउंटर

पुलवामा अटैक के बाद हुआ पुलवामा एनकाउंटर,जो कुछ भी आज भारत सरकार कर रही है , यह सब बहुत पहले हो जाना चाहिये , क्यों इतनी देर लगायी सरकार ने ? जबकि आतंकवादी या सीधे - सीधे शब्दों में कहें तो पाकिस्तान हमेशा से यही करता आ रहा है. लेकिन अबकी बार मोदी सरकार वाली सरकार तो पाकिस्तान जाकर गलबहियाँ करने में व्यस्त थी। आम, शॉल और प्रोटोकॉल तोड़ कर अपने सम्बन्ध कायम करने की कोशिश कर रही थी। इन्हें समझ ही नहीं आया क्यों इससे पहले वाली सरकार ने पाकिस्तान से बातचीत बंद कर रखी थी।  यह अपने आप में खुश कि जो काम पहले सरकारें नहीं कर सकीं वो काम मैं करूँगा।  जब विपक्ष में थे तब एक सर के बदले १० सर लाने की बातें करते थे और फिर सरकार बनते ही  जा बैठे पाकिस्तान की गोदी में , जबकि पाकिस्तान एक ऐसा आतंकवादी देश है जो आज़ादी के ७० साल बाद भी नहीं सुधरा है और यह सुधरेगा भी नहीं जब तक उसका हम सफाया नहीं करेगें।  निर्दोष तो अब भी मर ही रहे हैं क्यों न दुनियाँ से इसका नामोनिशान मिटाते समय शहीद हों।  
पाकिस्तान ने उरी अटैक किया हमने भी सर्जिकल स्ट्राइक की।  पाकिस्तान ने फिर २ साल बाद घिनौनी हरकत की। हम फिर बदला ले रहे हैं। अच्छा है कि ऐसे समय में सारा देश - विपक्ष भी एक साथ है.  सरकार को भी अब समझ में आया कि कैसे पाकिस्तान का विश्व मानचित्र से कैसे गायब करना है। 
 कोई नहीं,  देर आयद दुरुस्त आयद। 
      

Saturday, January 13, 2018

देश के सम्मान में खड़े होने में शर्म क्यों

लोगों को बहुत तकलीफ थी कि थियेटर में फिल्म शुरू होने से पहले क्यों राष्ट्रगान क्यों बजाते हैं ? लोगों को बहुत परेशानी होती थी कुछ सेकेण्ड के लिए देश के सम्मान में खड़े होने में। लोगो की परेशानी को देखते हुए  सुप्रीम कोर्ट ने भी  कहा कि "देशभक्ति साबित करने को सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान के दौरान खड़े होने की जरूरत नहीं है। " कई बड़े लोगों ने कहा कि ,"हम लोगों को देश भक्ति करना सिखा नहीं सकते। " मेरा यह कहना है कि ," स्कूलों में हम बच्चों को पढ़ना - लिखना ,बड़ो का आदर करना सिखाते हैं तो ऐसे ही जिन्हे देशभक्ति करनी नहीं आती उन्हें देश भक्ति सिखाने में क्या बुराई है।  कुछ लोग चीजें जल्दी सीख जाते हैं कुछ लोग देर से सीखते हैं लेकिन सीखते सभी हैं। 

अगर हम अपने देश का सम्मान करते हैं तो उसके सम्मान में खड़े होने में शर्म क्यों महसूस करते हैं ? अपने  देश के सम्मान में वन्दे मातरम बोलने क्या परेशानी  है ?  हम अपने घर के बड़े , बुजुर्ग, माँ, पिता , गुरु के सम्मान में खड़े होते हैं ,उनके प्रति अपना सम्मान दिखाने के लिये चरण स्पर्श करते हैं।  तो देश के प्रति यह आस्था, यह जज्बा क्यों नहीं दिखाते ?  अगर हमारे मन में इसके लिए प्यार है, गर्व है सम्मान है तो इसके दिखाने में  क्यों झिझकते हैं , इसके लिए बड़ी - बड़ी बहस करते हैं , कोर्ट - कचहरी करते हैं , कहते हैं मन में सम्मान हैं लेकिन सबको दिखाने में हर्ज़ समझते हैं।  
मन में है प्यार - सम्मान दिखाना नहीं चाहते तो यही भाव  हमें अपने  घर - परिवार, दप्तर, स्कूल में भी लागू करना चाहिए। कहते हैं ना कि दिल और मन किसने देखा है ,जुबाँ के कहने से ही समझ में आता है कि इंसान के दिल में क्या है ? 
तो देश के लिए जो भी आपके मन में प्यार सम्मान है और दिखायें। 


Monday, September 18, 2017

गन्दा गाना और गन्दी मानसिकता "बोल आंटी आऊँ क्या "

आज कल कोई भी वाहियात आवाज़ में गीत गाकर लोकप्रिय हो सकता है इसकी ताज़ा मिसाल है धिन चैक पूजा लेकिन उसकी आवाज़ ही बेसुरी है कोई चीप शब्द तो नहीं हैं उसके गीतों में , लेकिन आजकल कोई ओमप्रकाश है उसका गन्दा गाना #बोल आंटी आऊँ क्या  यू ट्यूब में काफी देखा जा रहा है और आश्चर्य की बात तो यह है कि उसके कई शो दिल्ली, मुंबई , हैदराबाद आदि बड़े शहरों में हो चुके हैं।  इन सभी शो में युवा बढ़ - चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं।  ऐसे गंदे बोलो वाले  इस गीत के शो सफल हो रहे हैं तो क्या यह माना जाना चाहिए कि आज युवाओं को ऐसे गीत पसंद आ रहे हैं।  हाँ क्यों नहीं हनी सिंह भी ऐसे ही गीतों को गाकर सफल गायक बने थे। लेकिन जब उनके शो को दिल्ली में बैन किया जा सकता है तब ओमप्रकाश के शो को क्यों नहीं।   
कैसे पुलिस ऐसे शो का आयोजन होने दे सकती हैं ? क्यों अपनी जिम्मेदारी पुलिस नहीं समझ रही ? क्या जब कोई काण्ड हो जायेगा तब कुछ करेगी तब क्या सोती पुलिस और सरकार जागेगी।  ये देखकर बहुत ही शर्म आती है कि इन शो में लड़कियाँ भी कंधे से कन्धा मिलाकर हिस्सा ले रही है और गीत को गा रही हैं। जबकि इंडियन आइडियल में जाने वाले ओमप्रकाश के घर में भी माँ और बहन होंगी और इसके शो में शामिल होने वाले युवाऒं के घर में भी। फिर भी गा रहे हैं "बोल आंटी "  .