Monday, December 15, 2014

कुछ नही बदला तब से अब तक

कुछ नही बदला तब से अब तक , १६ दिसम्बर आने में कुछ ही घंटे शेष हैं २ साल पहले की दिल्ली की वो वीभत्स घटना जिसमें कुछ राक्षसों ने एक लड़की का बस में बलात्कार तो किया ही और अपने हवस पूरी करने के बाद उसके साथ ऐसा निदर्यता और निर्लज़्ज़्ता से भरपूर ऐसा अनैतिक अत्याचार किया जिसके बारें में सोच कर ही रूह काँप जाती है।  उस लड़की जिसे बाद में निर्भया का नाम दिया गया अपने साथ हुए अत्याचार के बाद कुछ दिन अस्पताल में रहकर इस दुनिया से विदा हो गयी।  

निर्भया का पक्ष लेते हुए दिल्ली के साथ - साथ पूरे भारत में जुलूस निकले , रैलियां निकली , मोमबत्तियां लेकर मार्च हुए लेकिन इस सबके बावजूद क्या हुआ ? तब से लेकर अब तक क्या बदला कुछ भी नही बदला।  आज भी वैसे ही लड़कियों के साथ बलात्कार हो रहे हैं ? 

पिछले दिनों भी दिल्ली में  एक टैक्सी में एक के  लड़की के साथ ड्राइवर ने बलात्कार किया।  पुलिस ने उसे जल्दी ही पकड़ लिया, पूछताछ के बाद पता चला कि वो ड्राइवर पहले भी बलात्कार के मामले में जेल जा चुका है और ६  महीने जेल में रहा।  इसके अलावा वो कई आपराधिक गतिविधियों में शामिल रहा है।  जब एक बलात्कार की सजा सिर्फ ६ महीने मिलती है तब तो लोगों की हिम्मत बढ़ेगी ही इतनी सी सज़ा काट कर वो जेल से बाहर निकलेगा कुछ जुर्म करेगा साथ में कुछ लड़कियों को अपनी हवस का शिकार बनायेगा ६ महीने जेल जायेगा वहां  से हट्टा कट्टा होकर बाहर निकलेगा।  

कुछ नही होगा जब तक कानून सख्त नही बनेगें , कड़ी सज़ा नही मिलेगी अपराधियों में डर नही होगा, जुर्म करते ही रहेगें अपराधी ।  २ साल भी बाद भी  उन  ५ गुनाहगारों को  सज़ा नही हुई है जिन्होंने एक लड़की को मार दिया।  

कितनी भी सरकारें बदले लड़कियों की सुरक्षा के लिए कोई भी कड़े नियम नही बनते , क्या नियम बनेगें जब नेता ही जब - तब लड़कियों के चरित्र , उनके पहनावे के बारें में अपशब्द कहते हैं। 

Monday, September 22, 2014

कहाँ जाये ये बेचारी विधवायें ?

ड्रीम गर्ल यानि अभिनेत्री #हेमा मालिनी ने पिछले दिनों मथुरा और वृन्दावन में दूसरे राज्यों से आयी विधवाओं के बारें में ऐसा कुछ कहा कि सारे देश में उनकी इस बात को लेकर चर्चा आम हो गयी।  उनका कहना है कि  मथुरा - वृंदावन में  करीब  ४०हज़ार विधवायें हैं अब #बिहार और #बंगाल से विधवायें आकर यहाँ ज्यादा भीड़ न बढ़ाये। उन राज्यों में भी प्रसिद्ध मंदिर है तो वो वहां भी रह सकती हैं।  

सही कहा हेमा मालिनी ने वो वहां रह सकती हैं क्यों वो अपना घर , राज्य छोड़कर दूसरे जगह  दर - दर भीख मांगने को भटकती हैं।  एक कुत्ते से ज्यादा उनकी औकात नही हैं उन बेचारी विधवाओं की। लेकिन कहाँ जाये ये बेचारी जिनके घर वाले बहाने से वहां उन्हें खुद छोड़ जाते हैं। वो खुद अपनी इच्छा से अपना घर नही छोड़ती। सब जानते हैं मथुरा - वृंदावन के मंदिरों और आश्रमों में उनके साथ कैसा व्यवहार किया जाता है।  उनका शारीरिक शोषण तो होता ही है।  उन्हें न भरपेट भोजन मिलता और न ही बीमार होने पर उन्हें कोई चिकित्सा की जाती है। फिर भी उनका कोई ठिकाना नही। 

४० हज़ार विधवाओं के रहने की चिंता वहां की सांसद हेमा मालिनी को होना स्वाभाविक है कि  अगर दूसरे राज्यों से विधवायें उनके शहर में आयेगी तो वो रहेगी कहाँ क्योंकि जो पहले ही रह रही हैं उनकी स्थिति कौन से अच्छी है। विधवाओं के बारें में सोचना अच्छी बात है हेमा जी बाहर से आ रही विधवाओं की चिंता करें साथ में वहां जो पहले से रह रही हैं उन्हें शोषित होने से बचाये , रोटी ,कपडा और उनके स्वास्थ्य की ओर भी जरा ध्यान दे क्योंिक एक महिला होने  के नाते आप उनके दर्द को भली भांति समझ सकती हैं. 

इसके साथ ही हर राज्य की सरकार को भी अपने राज्य में कुछ ऐसा करना चाहिये जिससे  विधवा अपने ही राज्य में अपना जीवन यापन अच्छे से कर सकें साथ में ऐसे भी कुछ नियम बनाये कि उनके बेटे उनके साथ अच्छा व्यवहार करें नही तो सरकार उनके खिलाफ जुर्माना करें।  कुछ सख्त कानून बनाने की जरूरत है। नही तो कहाँ जाकर अपना जीवन जीये ये महिलायें। 

Friday, September 12, 2014

लड़की ही क्यों ?

पिछले दिनों एक खबर लगभग सभी समाचार पत्रों और टी वी चैनलों में दिखाई गयी खूब बढ़ा चढ़ा कर।  खबर यह थी कि कई हिंदी में काम करने वाली अभिनेत्री जिसने कई टी वी धारावाहिकों और मकड़ी, इकबाल जैसी फिल्मों में काम किया और दर्शकों की प्रशंसा तो पायी ही साथ में अभिनय के लिए उसे राष्ट्रीय पुरूस्कार भी मिला। २३ साल की यह युवती वैश्यावृति करते हुए पकड़ी गयी और साथ में उसके एक बहुत ही बड़ा व्यापारी भी था। ( सो कॉल्ड  हाई प्रोफाइल बिजनिस मैन ) 

मेरा सवाल बस इतना है कि इस सेक्स रैकेट में एक लड़की का ही नाम क्यों लिया तमाम समाचार पत्रों और चैनलों ने। क्या एक भी खोजी पत्रकार ऐसा नही है जो उस बिजनिस मैन का चेहरा तो दूर नाम भी नही बता सका । या सिर्फ श्वेता के नाम पर ही बेच दी सारी न्यूज़। कुछ तो शर्म आनी चाहिये मीडिया को क्योंकि जब भी कोई इस तरह के  सेक्स रैकेट का पर्दा फाश होता है तो सब जानते हैं कि कोई एक ही इससे नही जुड़ा होता। फिर आये दिन ऐसे सेक्स रैकेट पकड़े जाते रहे हैं लेकिन कभी भी किसी लड़की या महिला का चेहरा या नाम मीडिया में नही आता हैं तो ऐसे में इस हीरोइन को ही बलि का बकरा क्यों बनाया गया है 

वैसे सेक्स में तो एक महिला और पुरुष दोनों ही शामिल होते हैं तो एक के साथ इतना भेदभाव क्यों ? या इस न्यूज़ को बेचते - बेचते खुद भी बिक गये ?

Thursday, July 17, 2014

जुम्मे की रात ही क्यों चुम्मे की बात


आज कल एक गाना बहुत लोकप्रिय हो रहा है जुम्मे की रात है चुम्मे की बात है तो क्या जुम्मे की रात में ही चुम्मे की संभावना है, ना - ना  यहाँ संभावना सेठ की बात नही हो रही बल्कि यहाँ बात हो रही है किसी विशेष दिन या रात की जब चुम्मा संभव हो. क्या एक चुम्मे के लिए पूरे सप्ताह का इंतज़ार करना ठीक है या इस दिन सॉरी - सॉरी रात में कुछ विशेष आनंद बरसता है.

बहुत साल पहले भी यानि १९९१ में भी बिग बी ने जुम्मा से जुम्मा के दिन चुम्मा माँगा था लेकिन तब उन्होंने दिन में मांगा था यह रात में नही. अब चल रहा है २०१४ यानि कि २३ साल बाद हम आधुनिक हो गए हैं दिन की बजाय रात की बात करने लगे हैं अपने गीतों में. लेकिन इतने सालों बाद भी चुम्मा सिर्फ जुम्मा पर ही अटका हुआ है. क्यों वीक डेज में यह् काम नही हो सकता या जुम्मे से ही वीकेण्ड की शुरुआत आज प्रचलन में है इसलिए.  

‘जुम्मे की रात है चुम्मे की बात है गीत का संयोग देखिये फ़िल्म में यह फिल्माया गाया है सो काल्ड वर्जिन सलमान खान पर और इसे गाया है चुम्मा स्पेशलिस्ट मिका पाजी ने. यह गाना सुनकर हमारे सीरियल किसर बेचारे इमरान हाश्मी बहुत गश खाते होंगे कि नाम तो उनका बदनाम है फिल्मों में चुम्मे के लिए जबकि जोर - जोर से गाना गाकर मांग रहे हैं दूसरे नायक इसे.   


कल फिर जुम्मा है तो आप सभी इस लेख को पढ़ने वाले तैयार हो जाइए नही तो फिर अगले जुम्मे का इंतज़ार करना होगा.

क्योंकि अगर आप बिग बी और सलमान खान या फिर मिका के प्रशंसक हैं तो उनकी बात का कुछ तो मान आपको रखना ही चाहिए.          

क्या बलात्कार के लिए मोबाइल जिम्मेदार है ?

बलात्कार के लिए मोबाइल जिम्मेदार है यह कहना है कर्नाटक की महिला और बाल विकास   विधान मंडल की अध्यक्ष शकुंतला शेट्टी का . क्या सच में इस घिनौने कृत्य के लिए मोबाइल ही जिम्मेदार हैं. मुझे ऐसा नही लगता. बल्कि जिम्मेदार हैं वो लोग हैं जो इस कृत्य में शामिल होते हैं. लड़कियों के पास मोबाइल हो तो इसका मतलब है उनका बलात्कार होना शत प्रतिशत संभव है. और लड़कों के पास हो तो उन्हें हक बनता है बलात्कार करने का. नही - बिलकुल नही. महिला होकर जो महिलाओं के बारे में क्या सही है ?  क्या गलत है ? यह उनको नही पता.  हाँ उनका कहना यह सही है कि स्कूलों में मोबाइल नही होने चाहिए बच्चों के पास. लेकिन यह बात  लड़के – लड़कियों दोंनो के लिए ही समान रूप से लागू होनी चाहिए.

हर बलात्कार के पीछे लोग लड़की को ही क्यों जिम्मेदार क्यों मानते हैं ? उसके पास मोबाइल है, उसने मिस कॉल पर वापस कॉल किया, उसने छोटे कपडे पहने, वो रात में जा रही थी, वो बाबा के आश्रम में गयी थी, वो लिव इन रिलेशन में थी, वो पब में थी, उसने मेकअप किया था , १५ साल में उसकी शादी कर दो, उसका बॉय फ्रेंड है , वो धंधा करती है और भी ना जाने कैसी – कैसी वाहियात दलीलें.

जिन छोटी बच्चियों के साथ यह दुष्कर्म होता है क्या उन्होंने भी मेकअप किया, उनक बॉय फ्रेंड था छोटे कपडे पहने या वो पब गयी थी. शादी के बाद महिला का बलात्कार हो जाता है कभी पति, देवर या रिश्तेदारों द्वारा तब क्या कहेगे लोग इस बारे में.

हर बात के लिए लड़की को जिम्मेदार मानना छोडकर लड़कों को समझाओ, उनकी गलतियों पर पर्दा डालने की बजाय उन्हें सही गलत में फर्क करना बताओ. महिला को दोयम दर्जे की नही बल्कि बराबर की समझना बताओं, महिला सिर्फ भोगने की वस्तु नही है. महिला का सम्मान करना सिखाओं.



आज पुरुष इस कदर जानवर बन गया है समझ नही आता कि कब उसके अंदर का जानवर जाग जाए. तो समय रहते ही उसे सभ्य और सुसंस्कृत करने की जरुरुत है न कि यह कहने कि लड़के हैं उनसे तो गलती हो ही जाती है और १७ साल का लड़का जब किसी लड़की को अपनी हैवानियत का शिकार बनाता है तो उसे किशोर समझ कर सुधार गृह भेजने की बजाय उसे उसकी गलती की सजा दो.                                  

Monday, May 5, 2014

हास्य कार्यक्रमों के जज जो कभी हँसे ही नही

ज़ी टी वी पर एक नया हास्य शो शुरु हुआ है जिसका नाम है "गैंग्स ऑफ़ हंसीपुर".    इस कार्यक्रम में हास्य जगत के कई दिग्गज जैसे हम सभी के प्रिय राजू श्रीवास्तव, भारती सिंह,  क़ृष्णा अभिषेक और सुरेश मेनन हिस्सा ले रहे हैं।  ये सभी कलाकार ऐसे हैं जो कई वर्षों से हसां - हसां कर दर्शकों  का मनोरजंन कर रहे हैँ. लेकिन इन धुरंधर हास्य कलाकारों को कौन जज़ कर रहा है।  अभिनेत्री काजोल की बहन तनीशा, जिन्हे दर्शकों ने बिग बॉस में अरमान कोहली के साथ देखा था.  जिन्होंने कुल मिला कर ५ - ६ फिल्में की होंगी और उनमें मे भी उन्होने हास्य अभिनय नही किया होगा। इनके साथ दूसरी जज़ होंगी मन्दिरा बेदी , मन्दिरा ने भी कम  फिल्मों मे  काम किया है उन्होने कई शो में एंकरिंग जरुर की है।  

लेकिन यह बात गौर करने लायक है कि जहँा इतने हास्य दिग्गज कार्यक्रम में हैं तो जज़ करने वाले कलाकार भी उनकी ही श्रेणी के ही होने चाहिये। क्योंकि दर्शकों को हंसाना क़ोई मामूली काम नही है. 
किसी भी कार्यक्रम मे जज़ की उपयोगिता कम नही आंकी जानी चाहिये लेकिन इस कार्यक्रम को देख कर तो बस ऐसा लग  रहा है कि जज की कुर्सी का कोई महत्व ही नही है। 

 

Monday, March 31, 2014

करेगी अपने मन की

"कभी झाड़ू  कभी हाथ और कभी फूल 
 कभी भी नही झाड़ सकेगें 
समस्याओं से जूझते लोगों के 
रास्ते की  धूल
खुद ही अपने मद में चूर 
इन लोगों ने पहले कभी 
जनता का भला किया है 
जो इस चुनाव के बाद  करेगें 
अब जनता भी मूर्ख नही मज़ा 
सबका लेगी लेकिन 
करेगी अपने ही मन की."

Friday, February 28, 2014

पैसे लेकर हंसने वाले

जितने भी रीयल्टी शो , हास्य शो या किसी भी तरह के शो हों उन सभी  में दर्शक जरुर  होते हैं , जो कि बात - बात पर तालियाँ बजाते है।  खड़े होकर सवाल पूछते हैं और तो और स्टेज पर पहुँच जाते हैं फ़िल्मी कलाकारों के साथ डान्स करने के लिए।  क्या आपको पता है ये  सब कहाँ से आते हैं , क्यों बात - बात पर हंसते हैं ? क्योंकि उन्हें इसके लिए पैसे मिलते हैं।  बाकायदा उनका चुनाव किया जाता है निर्देशक द्वारा और निर्देशक उन्हें सवाल देते हैं और बताते हैं कि कैसे उन्हें ऐसा अभिनय करना जिससे दर्शको हंसी आये।


इन नकली दर्शकों की सप्लाई करने वाले एजेंट होते हैं जो कि टी वी शो और पार्टीयों में भीड़ बढ़ाने के लिए इन्हे भेजते हैं उनसे कमीशन लेकर।  इन नकली दर्शकों में आम तौर  कालेज के छात्र, संघर्ष करते मॉडल और फिल्मो में कैरियर बनाने के लिए आये हुए कलाकार होते हैं।  कार्यक्रमों की मांग के अनुसार एजेंट देसी बिदेशी सभी तरह के दर्शक उपलब्ध करवाते हैं।

इन कार्यक्रमों में खूबसूरत दिखने वाले दर्शकों को कुछ सहूलियत भी मिलती हैं जैसे उन्हें पैसे ज्यादा मिलते हैं साथ में आगे की सीटों में बैठने का मौका मिलता है। कुछ लोग तो इन कार्यक्रमो में नियमित जाते हैं क्योंकि इससे उन्हें पॉकेट मनी तो मिलती है साथ में कुछ नए लोगों के परिचय भी होता है जिसे फ़िल्मी दुनिया की भाषा में लिंक बनाना कहते हैं।

अब  तो आपको समझ में आ गया होगा किसी भी हास्य शो में जोक्स पर आपको हंसी न आये और उसमें बैठे हुए दर्शक जोर - जोर से हँसे तो उन्हें इसके लिए पैसा मिला होगा। इसके अलावा जिन दर्शकों की कपिल अपने प्रोग्राम में धज्जियाँ उड़ाये तो यह भी समझ लीजिये कि उसे उसके लिए ज्यादा कीमत मिली होगी आम दर्शकों के मुकाबले।
हाँ एक बात और भी है कि इन कार्यक्रमों में दर्शक अपनी मर्जी से हंस नही सकते उन्हें निर्देशक के कहने पर तालियां बजाना,  हंसना और शोर करना होता है।


Wednesday, February 12, 2014

सोशल मीडिया पर हास्य या मन की भड़ास

सोशल मीडिया की इन दिनों सबसे ज्यादा पूछ हो रही है।  क्या चुनाव की बाते हों यह फ़िल्म की बाते हों आज कल क्या नेता क्या अभिनेता सभी फेस बुक और ट्विटर पर दिखाई देते हैं।  किसके सबसे कितने लाइक्स और कितने फोलोअर हैं इसका जिक्र होता रहता है, कौन सी राजनितिक पार्टी सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा हावी है ? आज यह किसी से भी छुपा नही है।  आम लोगों की तरह अभिनेता भी अपने पल  - पल की ख़बरें और फ़ोटो अपडेट करते रहते  हैं।  

इसी सोशल मीडिया पर जहाँ एक दूसरे की खिंचाई भी हो रही है वहीं  दूसरी इसी पर कुछ हास्य चुटकुले भी लोगों पर बनाये जा रहे हैं इसी वजह से वो लोग भी रातों रात लोकप्रिय हो गये जो कि ज्यादा लोकप्रिय नही थे।  इसी क्रम में सबसे ज्यादा जिन पर जोक्स बने हैं वो हैं सबके बाबू जी यानि आलोक नाथ इनके संस्कारी जोक्स रातों रात वायरल हुए बाबूजी मेम्स के नाम से  वैसे तो आलोक नाथ को सभी दर्शक जानते पहचानते हैं लेकिन इन हास्य चुटकियों की वजह से अलोक नाथ को लगभग हर चैनल पर देखा जा सकता था जितने इंटरव्यू उन्होंने अपनी फ़िल्म या टी वी धारावाहिक के लिए नही दिए होंगे उतने उन्होंने बाबू जी मेम्स के लिए दिए।  इसी तरह नील नितिन मुकेश और पुरानी अभिनेत्री निरुपा रॉय पर भी कई हास्य सोशल मीडिया पर वायरल हुए।  

अब एक नया वायरल पिछले दिनों यू टूयब पर हुआ टाइम्स नाउ के लोकप्रिय प्रस्तुत एंकर अरनब  गोस्वामी को लेकर। चैनल टाइम्स नाउ पर हर रात उनका डेढ घंटे का कार्यक्रम आता है जिसमें  वो किसी भी चर्चित विषय पर बहस करते हैं ।  आज के समय के वो सबसे ज्यादा लोकप्रिय एंकर हैं  और उनका कार्यक्रम भी सबसे ज्यादा टी आर पी वाला कार्यक्रम है।  राहुल गांधी के साथ एक साक्षात्कार के बाद अरनब के बारें में भी जोक्स और विडियो बन चुके हैं। किस तरह से अरनब इस कार्यक्रम में अपनी मनमानी करते हैं और किसी भी अतिथि को बोलने नही देते यह सब दिखाया जा रहा है। 
खैऱ कुछ भी हो सोशल मीडिया का इस तरह उपयोग अच्छा है यह केवल लोगों को हंसाने के लिए है किसी को तकलीफ देने का नही।  लोग भी इन्हें पढ़ कर और देखकर आनंद ले रहे हैं। 


हालांकि रजनीकांत के ऊपर सबसे पहले जोक्स बनने शुरू हुए थे। 

Monday, February 10, 2014

क्या दर्शक यही देखना चाहते हैं ?


आज कल टी वी के हास्य कार्यक्रम हो या हास्य फ़िल्में इन सभी में सेक्स की बातें , अश्लील या द्विअर्थी संवाद होते हैं उनके बिना क्या हास्य की  बातें नही हो सकती। चाहे वो कॉफी विध करन हो, कॉमेडी नाईट विथ कपिल हो या कॉमेडी सर्कस हो। सभी में यही सब होता है क्या वजह है इसकी ? 


कॉमेडी नाईट विध कपिल में तो पुरुष ही महिला के चरित्र अभिनीत करते हैं।  दादी जो शराब के बिना नही रह सकती।  किसी ने अपने घर में ऐसी दादी देखी है क्या ?राजू श्रीवास्तव भी बदसूरत महिला के किरदार  में नज़र आते हैं.  दो महिला अपने ही किरदारों को अभिनीत कर रही हैं लेकिन एक के होंठों की ही मजाक बनाते हैं कपिल और एक हैं उनकी बुआ जिनकी शादी नही हुई हैं जो परेशान हैं अपनी शादी को लेकर जो हर समय लालायित रहती हैं शादी के लिए कोई भी मिल जाये चाहे वो जवान हो या ७० साल का बुजुर्ग

इसी तरह कॉफी विध करन है जिसमें करन भी हमेशा सेक्स और बेड रूम की  बातें करते हैं. अफ़सोस की बात है  कि इन दोनों ही कार्यक्रमों की टी आर पी सबसे ज्यादा  है 
क्या दर्शक यही देखना चाहते हैं ? 
 

Tuesday, January 7, 2014

शोले थ्री डी में


कल फ़िल्म "शोले" देखी थ्री डी में. बहुत रोमांचित थी इस फ़िल्म के लिए. एक वजह तो इसकी यह थी कि यह फ़िल्म थ्री डी में थी और दूसरी मैं पहली ही बार बड़े परदे पर इसे देख रही थी क्योंकि १९७५ में जब यह फ़िल्म रिलीज़ हुई थी उस समय मैं छोटी थी हालांकि टी वी पर तो अनेकों बार देख चुकी थी   फ़िल्म शुरू होने वाली थी मैंने अपना चश्मा पहन लिया लेकिन थ्री डी जैसा इफ़ेक्ट नज़र ही नही आया यही हाल लगभग सारे दर्शकों का था कुछ अपना चश्मा साफ़ कर रहे थे , कुछ को लगा उनका चश्मा खराब है लेकिन किसी को कुछ समझ नही आया  ऐसे ही करीब १० मिनट तक चलता रहा  अचानक फ़िल्म रुक गयी क्या हो रहा है कुछ समझ में नही रहा था  अगर छोटे शहर के थियेटर में फ़िल्म लगी होती तो सीटियां और गालियाँ तक शुरू हो गयी होती लेकिन यहाँ कुछ हुआ नही  क्योंकि मुम्बई में तो लोग अच्छे संवादों पर तािलयाँ बजाना भी पसंद नही करते

१० मिनट बाद फिर से फ़िल्म शुरू हुई अबकी बार थ्री डी इफ़ेक्ट था लेकिन कुछ खास मजेदार नही था  फ़िल्म के कुछ दृश्यों में  थ्री डी इफेक्ट था और कुछ में नही था बिना चश्में के फ़िल्म ज्यादा अच्छी नज़र रही थी  जिन दृश्यों में थ्री डी की  जरुरत थी वहाँ तो थ्री डी इफ़ेक्ट था ही नही. कुछ भी हो "शोले" फ़िल्म का मज़ा आया  क्योंकि दर्शकों को फ़िल्म के सारे  संवाद  याद थे और सभी साथ में बोल भी रहे थे 
 फ़िल्म को थ्री डी इफ़ेक्ट देने का प्रयास सरहानीय है लेकिन नही भी करते तो भी क्या था ? फ़िल्म वैसे ही बहुत अच्छी है