Monday, September 18, 2017

गन्दा गाना और गन्दी मानसिकता "बोल आंटी आऊँ क्या "

आज कल कोई भी वाहियात आवाज़ में गीत गाकर लोकप्रिय हो सकता है इसकी ताज़ा मिसाल है धिन चैक पूजा लेकिन उसकी आवाज़ ही बेसुरी है कोई चीप शब्द तो नहीं हैं उसके गीतों में , लेकिन आजकल कोई ओमप्रकाश है उसका गन्दा गाना #बोल आंटी आऊँ क्या  यू ट्यूब में काफी देखा जा रहा है और आश्चर्य की बात तो यह है कि उसके कई शो दिल्ली, मुंबई , हैदराबाद आदि बड़े शहरों में हो चुके हैं।  इन सभी शो में युवा बढ़ - चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं।  ऐसे गंदे बोलो वाले  इस गीत के शो सफल हो रहे हैं तो क्या यह माना जाना चाहिए कि आज युवाओं को ऐसे गीत पसंद आ रहे हैं।  हाँ क्यों नहीं हनी सिंह भी ऐसे ही गीतों को गाकर सफल गायक बने थे। लेकिन जब उनके शो को दिल्ली में बैन किया जा सकता है तब ओमप्रकाश के शो को क्यों नहीं।   
कैसे पुलिस ऐसे शो का आयोजन होने दे सकती हैं ? क्यों अपनी जिम्मेदारी पुलिस नहीं समझ रही ? क्या जब कोई काण्ड हो जायेगा तब कुछ करेगी तब क्या सोती पुलिस और सरकार जागेगी।  ये देखकर बहुत ही शर्म आती है कि इन शो में लड़कियाँ भी कंधे से कन्धा मिलाकर हिस्सा ले रही है और गीत को गा रही हैं। जबकि इंडियन आइडियल में जाने वाले ओमप्रकाश के घर में भी माँ और बहन होंगी और इसके शो में शामिल होने वाले युवाऒं के घर में भी। फिर भी गा रहे हैं "बोल आंटी "  . 

Monday, August 7, 2017

प्लीज़ पायरेसी को बढ़ावा न दे

४ अगस्त को शाहरुख़ खान की फिल्म "जब हैरी मेट सेजल" रिलीज़ हुई लेकिन निर्देशक इम्तियाज़ अली की इस फिल्म को दर्शक नहीं मिलें , जैसा कि हमेशा ही इम्तियाज़ की फिल्मों को मिलते रहे हैं.यह तो होना ही था जब एक ही स्क्रिप्ट पर बार - बार फिल्मे बनेगी तो, ख़ैर हम यहाँ बात कर रहे हैं ११ अगस्त को रिलीज़ होने वाली उस  फिल्म  , जो कि प्रधान मंत्री के स्वच्छ भारत अभियान का एक सन्देश कह सकते हैं. जी हाँ सही पहचाना हम "टॉयलेट - एक प्रेम कथा " की ही बात कर रहे हैं। जिसके बारें में पिछले दिनों यह सुनने में आया था कि यह फिल्म "ऑनलाइन लीक " हो गयी। इसके तुरंत बाद अक्षय कुमार ने सबसे रिक्वेस्ट की कि, "प्लीज़ पायरेसी को बढ़ावा न दे."  समझ नहीं आता कि फिल्म लीक कैसे हो जाती है और कहाँ होती है ? क्या सेंसर के लिए जाती है तब यह कांड हो जाता है या एडिटिंग टेबिल पर होता है , होता तो जरूर फिल्म के निर्माता , निर्देशक या एडिटर की टीम में से ही की कहीं से होता होगा , नहीं तो आम आदमी थोड़े ही अपने पेन ड्राइव में कॉपी कर लेता होगा। गलती होती उनके खुद के ही घर से होती है  और पायरेसी न करने की बात आम लोगों से की जाती है. 
आम आदमी तो इसका फायदा उठायेगा ही क्योंकि हर सप्ताह कोई न कोई फिल्म रिलीज़ होती है और  हर हीरो, हर निर्माता -- निर्देशक को अपनी फिल्म सफल बनानी है लेकिन टिकट रेट इतने ज्यादा हैं कि सब फ़िल्में देख सकना किसी के बस की बात नहीं है. हाँ यह बात सही है कि पाइरेसी को बढ़ावा नहीं देना चाहिए लेकिन इसके लिए फिल्म वालों को खुद को सुरक्षा रखनी चाहिए। इस बात पर उन्हें ध्यान रखना चाहिए "सावधानी हटी दुर्घटना घटी। "
वैसे यह बात ऐसी ही है जैसे देश में चीन का सामान बराबर बिकता है लेकिन जनता से यह उम्मीद की जाती है कि वो देश भक्ति दिखाये और न खरीदें। हर नागरिक में देश के लिए सम्मान और भक्ति होनी ही चाहिये लेकिन चीनी सामान न बिक़े इसके लिए सरकार को भी कुछ करना चाहिये। वैसे ही फिल्म लीक न हो इसके लिए फिल्म वालों को कड़ी सुरक्षा रखनी पड़ेगी। जनता भी पाइरेसी ख़िलाफ़ बीड़ा उठाये और फिल्म वाले भी। तभी सफलता मिलेगी ऐसे मिशन में। 
वैसे पहले भी कुछ फ़िल्में लीक हुई थी जिनमें उड़ता पंजाब थी और ग्रांड मस्ती जैसी सस्ती फिल्म थी।  इस फिल्म के लीक होने के बाद तो बाकायदा मीडिया को भी बुलाया था कि हमारी फिल्म इसलिए असफल हो गयी क्योकि फिल्म पहले ही लीक हो गयी थी। ग्रांड मस्ती वालों को सोचना चाहिए कि चलो इसी बहाने कुछ लोगो ने उनकी फिल्म को देखा,  नहीं तो वैसे ही उसका तो यही हाल होता।  वैसे यह आईडिया भी बुरा नहीं है जब फिल्म प्लॉप होने का अंदेशा हो तो ख़बर उड़ा दो कि हमारी फिल्म लीक हो गयी है। 

Friday, August 4, 2017

बॉलीवुड के गाइड -- पुराने और नये

आजकल हमारे हिंदी फ़िल्मी निर्माता - निर्देशकों पर गाइड को फिल्म का मुख्य किरदार बनाने में ज्यादा दिलचस्पी है। पिछले साल २०१६  में यशराज बैनर की फिल्म आयी थी "बेफ़िक्रे।  आदित्य चोपड़ा द्वारा निर्देशित इस फिल्म में अभिनेत्री वानी कपूर पेरिस में आने वाले पर्यटकों को पेरिस घुमाती थी यानि पेरिस में गाइड बनी थी और यहीं उनकी मुलाकात रनवीर सिंह से होती है खैर फिल्म की कहानी क्या थी और उसका क्या हाल हुआ था सभी जानते हैं। 
ऐसे ही गाइड के किरदार वाली फिल्म  "जब हैरी मेट सेजल" भी आज ही रिलीज़ हुई है इस फिल्म में भी शाहरुख़ खान गाइड बने हैं. इस फिल्म में वानी से बेहतर जॉब मिली है शाहरुख़ खान को। जहाँ वानी सिर्फ पेरिस की गाइड थी वहीं शाहरुख़ यूरोप के गाइड बने हैं। फिल्म "जब हैरी मेट सेजल"में भी शाहरुख़ सेजल यानि अनुष्का को यूरोप घुमाते है और आख़िरी में दोनों को मोहब्बत हो जाती है। पर शायद दर्शकों को इस फिल्म से ज्यादा मोहब्बत न हो। 
२०१३ में भी एक फिल्म आयी थी "शुद्ध देसी रोमांस " इस फिल्म में सुशांत सिंह राजपूत गाइड बने थे। यशराज की ही थी यह फिल्म भी. कुछ - कुछ कहानी भी "बेफ़िक्रे" जैसी ही थी। कुछ भी शुद्ध और देसी नहीं था सब विदेशी ही नकल थी। हाल फिल्म का सब जानते ही हैं। 
१९६५ में भी एक फिल्म आयी थी गाइड विषय पर ही ,फिल्म का नाम ही "गाइड " था  स्व देव साहब और वहीदा रहमान की जोड़ी थी इस फिल्म में । आर के नारायण के उपन्यास "गाइड " पर आधारित थी यह फिल्म। देव साहब राजू गाइड की भूमिका में थे और वहीदा रहमान विवाहित थी लेकिन दोनों में मोहब्बत हो जाती है।   इस फिल्म को दर्शकों की भी भरपूर मोहब्बत मिली।फिल्म ही लाज़वाब थी। 
Image result for jab harry met sejal१९६५ में जहाँ राजू गाइड भारत के एक इलाके का ही गाइड था।  अब २०१६ और २०१७ में देश ने हालाँकि बहुत तरक़्क़ी कर ली है लेकिन फिर भी आज के गाइड विदेशों में गाइड की नौकरी कर रहे हैं लेकिन प्यार उनका देसी ही है।  प्रधानमंत्री कह रहे हैं  देश में नौकरी बहुत अवसर हैं लेकिन अब गाइड विदेश जा रहे हैं नौकरी के लिये और फिर भी फिल्म को चला नहीं पा रहे हैं. देश के गाइड (राजू -  देव साहब ) ही अच्छे थे जिनकी फिल्म ने भरपूर कमाई की और आज भी जब फिल्म देखो बहुत ही अच्छी लगती है.

Friday, June 30, 2017

भीड़ का वहशीपन

क्या हो गया आज के लोगों को बात - बात में गुस्सा , बात - बात पर भीड़ इकक्ठा करके किसी भी इंसान को बहशी की तरह जान से मार देना। कभी किसी के टोकने पर ऐसा मत करो , वैसा मत करो कहने पर गुस्सा होकर लोगों को लेकर जान से मार देना। कभी गाय के नाम पर , कभी धर्म के नाम पर , कभी जाति के नाम पर, किसी औरत को बच्चा चुराने वाली समझ कर भीड़ द्वारा मार देने के समाचार हर रोज़ ही सुनने को मिलते हैं और तो और शर्म तो इस बात पर आती है कि स्मार्ट फोन से वीडियो बनाने का इतना शौक़ हो गया है लोगों को। ऐसे लोग विचलित कर देने वाली ऐसी घटनाओं के वीडियो बनाने से भी नहीं चूकते।  मज़े लेते हैं किसी के मरने का , यह नहीं कि जाकर किसी की सहायता करें। आज हर जुर्म भीड़ की आड़ में किया जा रहा है  चाहे वो बलात्कार हो या बिना कुछ कारण जाने बिना किसी व्यक्ति को पीट पीट कर मार देना।  क्या भीड़ में अपराध करने से वो कम हो जाता है या उसकी सज़ा कम मिलती है या मिलती ही नहीं इसलिए लोग ऐसा कदम उठाते हैं।  
भीड़ में इकट्ठा होकर लोग किसी असहाय की मदद क्यों नहीं करते , किसी लड़की की मदद क्यों नहीं करते , किसी शरीफ़ को जब लोग गुण्डे लाठी से पीटकर मार रहे होते हैं तो आगे आकर बचाते क्यों नहीं।  क्या सिर्फ़ भीड़ की शक्ल में अपराध ही करना चाहिये।  वैसे भी भीड़ में एक जुट होकर एक असहाय को मारने वाले बुज़दिल ही होते हैं हिम्मत वाले नहीं होते। अगर इतनी हिम्मत है किसी को मारने की तो जाओ सीमा पर और सीमा पार से आने वाले आतंकवादियों को मारो न कि किसी गरीब को। 

Tuesday, June 27, 2017

दोहरी मानसिकता पहलाज़ निहलानी की

सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष पहलाज़ निहलानी के बारें में कौन नहीं जानता।उनके फ़िल्म सेंसर करने के नियमों से भी सभी अच्छी तरह से वाकिफ़ हैं।अभी किस फ़िल्म में किस संवाद को फ़िल्म में रखना है या नहीं रखना है इसके लिये जनता के वोट मंगा रहे हैं और जब तक ये वोट आयेगें पक्ष और विपक्ष में। तब तक देश का छोटे से छोटा बच्चा भी उस सम्वाद को देख और सुन चुका होगा।  वैसे उनकी सेंसर की कैंची बड़े बैनर की फिल्मों पर कम ही चलती है और चलती भी तो बेवकूफी की बातों पर । साला खड़ूस फ़िल्म का शीर्षक तो ठीक है लेकिन फिल्म में संवाद में यह नहीं होना चाहिए। वैसे सेंसर करने के ये नियम कोई नये नहीं हैं ।  हॉरर फिल्म एक थी डायन को  यू/ ए सर्टिफिकेट मिला था जबकि सच में फ़िल्म को ए सर्टिफिकेट मिलना चाहिए था । एक छोटी फ़िल्म को बस इसलिये ए सर्टिफिकेट दिया क्योंकि उसमें सिर्फ आत्मा शब्द बोला गया था। पिछले दिनों आयी यशराज़ बैनर की फ़िल्म बेफिक्रे को भी यू/ए मिला जबकि सब जानते है कि फ़िल्म क्या और कैसी थी । फ़िल्म को यू/ए इसलिये दिया क्योंकि फ़िल्म में पेरिस की संस्कृति दिखाई थी । यह नही सोचा कि फ़िल्म को दर्शक  कहाँ के देखेगे पेरिस के कि भारत के। अब फ़िल्म जब हैरी मेट सेज़ल के साथ भी वहीं कर रहे हैं जो अपना काम है करो लाख लोगो के वोट मंगा कर फ़िल्म सेंसर होगी अब जैसे रीयल्टी शो वाले  ड्रामा करते है।