Friday, June 30, 2017

भीड़ का वहशीपन

क्या हो गया आज के लोगों को बात - बात में गुस्सा , बात - बात पर भीड़ इकक्ठा करके किसी भी इंसान को बहशी की तरह जान से मार देना। कभी किसी के टोकने पर ऐसा मत करो , वैसा मत करो कहने पर गुस्सा होकर लोगों को लेकर जान से मार देना। कभी गाय के नाम पर , कभी धर्म के नाम पर , कभी जाति के नाम पर, किसी औरत को बच्चा चुराने वाली समझ कर भीड़ द्वारा मार देने के समाचार हर रोज़ ही सुनने को मिलते हैं और तो और शर्म तो इस बात पर आती है कि स्मार्ट फोन से वीडियो बनाने का इतना शौक़ हो गया है लोगों को। ऐसे लोग विचलित कर देने वाली ऐसी घटनाओं के वीडियो बनाने से भी नहीं चूकते।  मज़े लेते हैं किसी के मरने का , यह नहीं कि जाकर किसी की सहायता करें। आज हर जुर्म भीड़ की आड़ में किया जा रहा है  चाहे वो बलात्कार हो या बिना कुछ कारण जाने बिना किसी व्यक्ति को पीट पीट कर मार देना।  क्या भीड़ में अपराध करने से वो कम हो जाता है या उसकी सज़ा कम मिलती है या मिलती ही नहीं इसलिए लोग ऐसा कदम उठाते हैं।  
भीड़ में इकट्ठा होकर लोग किसी असहाय की मदद क्यों नहीं करते , किसी लड़की की मदद क्यों नहीं करते , किसी शरीफ़ को जब लोग गुण्डे लाठी से पीटकर मार रहे होते हैं तो आगे आकर बचाते क्यों नहीं।  क्या सिर्फ़ भीड़ की शक्ल में अपराध ही करना चाहिये।  वैसे भी भीड़ में एक जुट होकर एक असहाय को मारने वाले बुज़दिल ही होते हैं हिम्मत वाले नहीं होते। अगर इतनी हिम्मत है किसी को मारने की तो जाओ सीमा पर और सीमा पार से आने वाले आतंकवादियों को मारो न कि किसी गरीब को। 

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