Monday, February 2, 2015

गुरु गुड़ ही रह गया और चेले शक़्कर बन गये

दिल्ली विधान सभा के चुनाव ७  फरवरी २०१५  को हो रहे हैं।  जैसे - जैसे चुनाव का दिन नजदीक आता जा रहा है।  एक दूसरे पर दोषारोपण, आक्षेप, अपनी कमी को छुपा कर दूसरी पार्टी की कमी को जनता के सामने बढ़ा चढ़ा कर उजागर करना ही हरेक पार्टी का जन्म सिद्ध अधिकार है और वो इस अधिकार का पूरा का पूरा फायदा उठाती भी है. 

 दिल्ली की राजनीति गर्मा रही है और इस राजनीति के केन्द्र में दो ऐसे इंसान हैं जो कभी एक दूसरे के साथ कंधे से कंधे मिलाकर काम कर रहे थे और जिस मुद्दे को लेकर दोनों साथ में काम कर रहे थे वो मुद्दा तो कहीं पीछे छूट गया  और ये दोनों ही एक ही कुर्सी के लिये चुनाव में अपनी - अपनी दावेदारी बता रहे हैं। 

किरन बेदी ने अपना कॅरियर १९७२ में आई पी एस से शुरू किया और एक अच्छी पुलिस अधिकारी के रूप में अपना नाम कमाया और अनेकों अवार्ड भी हासिल किये।  दिल्ली की मुख्यमंत्री की जिस कुर्सी के लिए किरन बेदी का सामना अरविन्द से है उन्होंने ही २०१० में सी डब्ल्यू जी स्कैम में साथ काम करने के लिए बुलाया था।  फिर दोनों ही २०११ में अन्ना हज़ारे के साथ देश में  लोकपाल बिल लाने के लिए आंदोलन  से जुड़ गये।  

२०१२ में अरविन्द ने आम आदमी पार्टी के नाम से एक नई राजनितिक पार्टी बनायी।  जब अरविन्द राजनीति से जुड़े और उन्होंने अपनी पार्टी बनायी तो सबसे पहले किरन ने ही उन्हें बहुत भला बुरा कहा था और अब जनवरी २०१५ में किरन भी आखिरकार भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गयी और अब मुख्यमंत्री का चुनाव भी लड़ रही हैं।  

एक ही साथ दो काम करने वाले साथी आमने - सामने एक दूसरे से लड़ रहे हैं एक - दूसरे की भला - बुरा कह  रहे हैं।  इसे ही कहते हैं राजनीति, इसमें कोई भी किसी का नही , आज का साथी कल का दुश्मन और कल का साथी आज का दुश्मन पलक झपकते ही बन  जाता है। लेकिन देश को चलाने  के लिये इसी गन्दी राजनीति का सहारा लेना पड़ता है.

गुरु अन्ना हज़ारे के दोनों चेले मुख्यमंत्री की दौड़ में एक - दूसरे  पछाड़ने में लगे हैं और इसके लिए वो दोनों कुछ भी करने के लिए तैयार हैं।   गुरु गुड़ ही रह गया और चेले शक़्कर बन गये.
गुरु अन्ना आज भी धरने की धमकी दे रहे हैं और चेले मुख्यमंत्री की दौड़ में भाग रहे हैं। 
कौन सा चेला कुर्सी पर विराजमान होगा यह तो १० फरवरी को पता चलेगा ? 

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