Monday, May 13, 2013

" गाली और युवा "




 अगर वो फिल्म देखें जिसमें ३ - ४ दोस्तों की कहानी हो तो उसमें गालियों की भरमार तो होगी ही इसके अलावा उन्हें ऐसा दिखाया जाता है कि दारु , सिगरेट और सेक्स के अलावा उन्हें कुछ भी नही चाहिये . क्या सच में आज के युवा ऐसे हैं जो की हमेशा बस सेक्स के बारे में सोचते हैं ? कैसे कब कोई लड़की उन्हें मिले और वो हो जाये बस शुरू  या फिल्मों में उन्हें ऐसा पेश किया जाता है . ऐसी फिल्मों को दर्शक पसंद भी बहुत करते हैं . क्या वजह है इसकी ? क्या सच में  द्विअर्थी संवाद और गाली आज के युवाओं की आम बोल चाल की भाषा हो गयी है .

पिछले दिनों आयी  फिल्म "गो गोवा गॉन"  में भी यही सब कुछ था, आने वाली फिल्म 'फुकरे ' में भी कुछ ऐसा है . इससे  पहले आयी फिल्म  देल्ही बेली  , प्यार का पंचनामा, गैंग्स ऑफ़ वासेपुर , गोलमाल - ३ , क्या सुपर कूल हैं हम  और भी कई फ़िल्में हैं . किस किस का नाम ले अब तो हर दूसरी फिल्म में यही सब होता है .

वैसे भी आज कल हर हिंदी फिल्म में गाली होना बहुत ही जरुरी हो गया है ? ओंकारा हो गैंग्स ऑफ़ वासेपुर या ये साली जिन्दगी , इश्किया . गालियों की भरमार वाली फ़िल्में हैं बन रही हैं आज कल . इस बारे में निर्माता - निर्देशकों से पूछने पर वो कहते हैं कि इन फिल्मों में हमने  उस जगह की कहानी दिखाई है जिसमे गाली देना आम बात है तो हमने भी तो वैसा ही दिखाया है . 
गाली , द्विअर्थी संवाद , सेक्स आज फिल्म बेचने का फार्मूला हो गया है बस . 

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