Monday, May 6, 2013

"बॉम्बे टाकीज़ "


हाल ही में रिलीज़ हुई है फिल्म "बॉम्बे टाकीज़ " . बहुत चर्चा थी इस फिल्म कि तो सोचा क्यों न इस फिल्म को देखा जाये . बड़े - बड़े निर्देशकों की ४ अलग -- अलग कहानियाँ थी इसमें . लेकिन एक भी एक ऐसी कहानी नही थी जिसने  दर्शको के दिलों को छूया हो या उनके दिलों दिमाग पर छायी हो . फ़िल्मी दुनिया के जाने माने निर्देशकों के पास क्या इससे अच्छी कहानियाँ नहीं  थी हिंदी सिनेमा के १० ० साल के जश्न को  मनाने के लिए  . इससे बहुत बेहतर कहानियाँ हो सकती थी . अगर इन सभी कहानियों को हिंदी सिनेमा के १० ० साल के जश्न से अलग देखें तो यह ठीक हैं . जहाँ तक कलाकारों की बात करे तो सभी ने अच्छा काम किया है . नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी या विनीत कुमार की बात करे या रानी , रणदीप हुदा या बाल कलाकारों की बात करे तो सभी का काम अच्छा है .
 
लेकिन फिर वही बात आकर अटक जाती है किसी भी हिसाब  यह फिल्म "बॉम्बे टॉकीज़ "  १० ० साल के जश्न से मुताबिक़ नहीं थी . समझ नहीं आता क्या सोच कर यह फिल्म बनायी . खुद ही फिल्म बनाओ और खुद ही पीठ थपथपाने आदत सी बन गयी है फिल्म निर्माता और निर्देशकों की . सारे दर्शक जाये भाड़ में हम तो वहीँ बनायेगें जो हमे अच्छा लगेगा. शायद ऐसा ही कुछ सोचते होंगे यह लोग .

यह भी सुना जा रहा है कुछ कहानियाँ किसी दूसरे की थी जिन्हें निर्देशकों ने अपने नाम से बना दिया है . अब क्या सच्चाई है ? पता नहीं , खैर दर्शकों को पसंद नहीं  आयी यह "बॉम्बे टाकीज़ "

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