Tuesday, October 11, 2022

पुत्री की मंगल कामना भी करिये और पुत्री का भी मान बढ़ाइये।

जब भी मैं भगवान की आरती करती हूँ या कोई भी धार्मिक किताब पढ़ती हूँ हमेशा ही मन में ख्याल आता है। क्यों कभी किसी भी आरती में कोई पुत्री की कामना नहीं करता है ? और क्यों कभी कोई भी उसकी लम्बी उम्र की कामना नहीं करता है ? 

आज जब सब कुछ बदल रहा है। अब जब ऑनलाइन पूजा हो जाती है , प्रसाद मिल जाता है या हम भगवान के दर्शन भी कर लेते हैं तो फिर इन धार्मिक पुस्तकों में क्यों बदलाव नहीं किये गये। 

दुर्गा देवी के कवच में अपने शरीर के सभी अलग -अलग अंगो की रक्षा करने का उल्लेख है । साथ में पुत्रों की यह देवी रक्षा करे और पत्नी की यह देवी  रक्षा करे लिखा गया है  लेकिन पुत्री की कौन सी देवी रक्षा करे यह लिखा ही नहीं गया है। अफ़सोस होता है यह सब पढ़ कर। इसी तरह गणेश जी की आरती में "बांझन को पुत्र देत " है। "बाँझन को पुत्र देत " क्यों ? क्या हमेशा कोई औरत ही बाँझ होगी  क्या कभी कोई पुरुष बाँझ नहीं होगा।

  इसी तरह  मैं दुर्गा शप्तशती पढ़ती हूँ उसमें पुरुष के हिसाब से ही सभी लिखा गया है कि जैसे बस जैसे कोई पुरुष यह पुस्तक पढ़ रहा हो , क्या कोई स्त्री यह पुस्तक नहीं पढ़ सकती ?
एक ही लीक पर लिखी हुई है सभी धार्मिक किताबें। अब तो इनमें बदलाव करो। क्या यह सब धार्मिक पुस्तकें पढ़ते हुए आप कभी यह बातें नहीं सोचते। क्या आपको नहीं लगता इन पुस्तकों में पुत्री का भी जिक्र होना चाहिए।
 अगर आपको भी मेरे तरह कुछ इस तरह का अनुभव होता है तो आप इन पुस्तकों और आरती को पढ़ते हुए पुत्र के साथ - साथ पुत्री की मंगल कामना भी करिये और पुत्री का भी मान बढ़ाइये। 


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